प्रधानमंत्री कहते हैं कि वे एक दो किलो गाली रोज़ खाते हैं यह बात सरासर ग़लत है :रवीश कुमार

प्रधानमंत्री कहते हैं कि वे एक दो किलो गाली रोज़ खाते हैं मगर गालियों को पौष्टिक आहार में बदल देते हैं। यह बात सरासर ग़लत है। उन्हें जो गाली देता है वो जेल में डाल दिया जाता है। जो आलोचना करता है, उसके यहाँ छापे पड़ते हैं। राज्य सभा सांसद की अवैध रूप से गिरफ़्तारी होती है। प्रधानमंत्री चुप रहते हैं। दरअसल उन्हें गालियाँ देने या आलोचना करने के कारण कितने लोग जेल गए और कितनों के यहाँ छापे पड़े, इसका रिकार्ड देखेंगे तो जान जाएँगे कि पोषक आहार में बदलने का क्या मतलब है। प्रधानमंत्री जेल और छापों को पोषक आहार बता रहे हैं।

सच यह है की प्रधानमंत्री मोदी और गाली देने की राजनीति का अन्योन्याश्रय संबंध हैं। 2014 से उनके समर्थन में गाली देने की पूरी सेना अस्तित्व में आई। उनके समर्थकों की राजनीतिक भाषा में गालियाँ शामिल हो गईं। जो लिख कर गाली देने लगे। गालियाँ लिखने की नई वर्तनी गढ़ी गई। सोशल मीडिया ऐसे दस्तावेज़ों से भरा है। यहाँ तक कि एक बार सूत्रों के हवाले से ख़बर छपी कि प्रधानमंत्री ने अपने समर्थकों से गाली न देने को कहा है लेकिन कुछ हुआ नहीं।

https://www.youtube.com/watch?v=3yV_CUNzQHY

उनके दौर में में गाली विपक्ष को दी गई। मानवाधिकार की बात करने वालों को गालियाँ दी गईं। गोदी मीडिया का जन्म हुआ जिसने विपक्ष को अपमानित करने की भाषा को जन्म दिया। जो एक तरह से गाली ही है। गोदी चैनलों से विपक्ष को ग़ायब करना भी लोकतंत्र को गाली देना है। उनकी आलोचना गाली नहीं है। क्या वे आलोचना को गाली समझते हैं? प्रधानमंत्री से सवाल करने वालों को गाली देती है। यहाँ तक कि महिला पत्रकारों को गालियाँ दी गईं। सवाल करने वालों खो बदनाम करने, उनके ख़िलाफ़ अफ़वाहें फैलाने का तंत्र विकसित हो चुका है। पूरी ट्रोल सेना अस्तित्व में आ चुकी है। इससे ध्यान हटाने के लिए प्रधानमंत्री कहते हैं कि उन्हें गालियाँ दी जाती है।

असल में चर्चा होने लगी थी कि राहुल गांधी को इतनी गालियाँ पड़ी फिर भी वे टूटे नहीं। लगता है इसे सुनकर

प्रधानमंत्री ‘ड्रीम सिक्वेंस’ में चले गए हैं और कल्पना कर रहे हैं कि अरे हाँ गालियाँ तो उन्हें दी जाती हैं और वे मुक़ाबला कर रहे हैं। मोदी बीस साल से सत्ता में है। फिर भी ख़ुद को पीड़ित असहाय के रूप में पेश करते हैं ताकि जनता यह सोचकर चुप हो जाए कि अपना दुख क्या रोना यहाँ तो प्रधानमंत्री ही रो रहे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे चाहते तो विज्ञापनों में उनकी भी फ़ोटो चमक सकती थी। जबकि उनकी ही तस्वीर चारों तरफ़ नज़र आती है। उसी तरह का यह बयान है।

अगर आप सिर्फ़ उन्हीं ख़बरों को सर्च करें कि प्रधानमंत्री को अपशब्द कहने वालों और उनकी आलोचना करने के साथ क्या हुआ तो आप हैरान रह जाएँगे। उनके दौर में इस देश का जो नुक़सान हुआ है वह बहुत गहरा है। इसे समझने की बुद्धि ख़त्म कर दी गई है। फिर भी कुछ पुरानी ख़बरों की कतरनें लगा रहा हूँ । देख लीजिएगा

 

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