उत्तर प्रदेश में होने वाले क़त्ल की अदालत जांच कराए,AIMC के महासचिव की मांग

नई दिल्ली :लोकतांत्रिक प्रणाली में संविधान आत्मा के समान है और इसी कानून और संविधान के तहत, राज्य और लोग प्रगति करते हैं। शांति और सुरक्षा का माहौल बरकरार रहता है। जब कानून का उल्लंघन होता है और कानून के विरद्ध कार्रवाई की जाती है, तो अदालत से संपर्क किया जाता है। कोई भी कानून का उल्लंघन करता है, चाहे वह जनता हो या सत्ताधारी पक्ष का कोई व्यक्ति, मामला अदालत में प्रस्तुत किया जाता है और अदालत से तय होता है कि कौन सही है और कौन गलत है। अपने इन विचारों को आल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव डा. मोहम्मद मंज़ूर आलम ने व्यक्त किया। उन्होंने अपने बयान में कहा कि कानून का डर और भय हर किसी के दिल में रहना चाहिए। कानून की नजर में, सभी समान होने चाहिए और इस आधार पर कानून और व्यवस्था किसी भी राज्य में बनी रहती है। देश और राज्य में विकास होता है, लेकिन जब कानून कुछ लोगों पर लागू होता है और कुछ लोगों को छूट दी जाती है, तो अंधेरे नगरी चौपट राज वाला मामला शुरू हो जाता है।

इसी श्रेणी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बयान को देखा जा सकता है कि उन्होंने यूपी विधानसभा में कहा था कि “जो लोग मरने आए थे वे मरेंगे ही, ये अलग बात कि वो पुलिस की गोली स नहीं बल्कि चरमपंथियों की गोली से मरे ” डॉ.मुहम्मद मंजूर आलम ने योगी आदित्य नाथ के बयान को शर्मनाक बताया और कहा कि एक मुख्यमंत्री का ऐसा गैरजिम्मेदाराना बयान शर्मनाक और कानून व्यवस्था के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका इस उद्देश्य के लिए है कि उसे सही और गलत के बीच फैसला करना चाहिए। शोषितों को न्याय दो और दोषियों को सजा दो। उत्तर प्रदेश में गोलियां किसने चलाईं, इसकी जांच के लिए सरकार एक कमीटी बनाए। यदि सरकार ऐसा नहीं करती है, तो न्यायपालिका को पूरे मामले की जांच अपनी निगरानी में करानी चाहिए ताकि यह पता चले कि प्रदर्शनकारियों पर किसने गोली चलाई और हमला किया। यहां तक ​​कि जो लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं थे, उन पर किस ने चलाई। जब तक जांच नहीं होगी, मृतक के हत्यारे का कैसे पता चलेगा कि वह चरमपंथी की गोलियों का निशाना बने या खाकी वर्दी में छिपे गुंडों की गोलियों के निशाना बने।

डॉ. मुहम्मद मंजूर आलम ने कहा कि हम न्यायपालिका से पूरे मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने की मांग करते हैं। जो पूरे मामले की जांच करे कि मेरठ ,संभल, फिरोजाबाद,कानपुर सहित अन्य शहरों में प्रदर्शनकारियों पर हमला किस ने किया, गोलियां किसने चलाईं? जो लोग गोलियों का शिकार बने क्या वो विरोध प्रदर्शन में शामिल थे।क्या विरोध करना संविधान के विरुद्ध है ? क्या लोकतंत्र में लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए विरोध करना देश के लिए ग़द्दारी और दुश्मनी है कि उन पर गोलियां चलादी जाऐं ? क्या प्रदर्शन करना ज़ुल्म है कि ये कहा जाए कि अगर वो मरने के लिए आए थे तो वो मरेंगे नहीं ? 20 दिसंबर को, उत्तर प्रदेश के मेरठ, संभल, कानपुर, फ़िरोज़ाबाद सहित कई शहरों में 22 से अधिक मुसलमानों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मी की गोली लगने से मौत हुई है और यही फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में भी बताया गया है, लेकिन सरकार इनकार कर रही है।

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