अंबेडकर ने गांधी की जान बचाई और गोडसे ने हत्या कर दी, बहुजनवाद और ब्राह्मणवाद में यही फर्क है

नई दिल्लीः आधुनिकाल में जिस व्यक्तित्व ने गांधी को सबसे निर्णायक बौद्धिक और नैतिक चुनौती दी उनका नाम डॉ. आंबेडकर है, दूसरे शब्दों में कहें तो गांधी के सबसे तीखे आलोचक-विरोधी डॉ. आंबेडकर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी गांधी के शारीरिक खात्में के बारे में सोचा भी नहीं, बल्कि उनकी मृत्यु पर शोक ही मनाया। मारने को कौन कहे, मारने बारे में सोचने को कौन कहे, जब गांधी की जान बचाने का समय आया (संदर्भ दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल के खिलाफ गांधी का आमरण अनशन) तो दलितों के लिए हासिल सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि को भी दांव पर लगाकर डॉ. आंबेडकर ने गांधी की जान बचाई। (पूना पैक्ट, 1932)

इसके विपरीत सावरकर के अनुगामी और हिंदू राष्ट्र को अपना आदर्श मानने वाले वाले हिंदू धर्म रक्षा की भावना से प्रेरित गोडसे, सहिष्णु और सर्वधर्म समभाव के हिमायती और नरम हिंदू माने जाने वाले गांधी की हत्या करने में थोड़ा भी नहीं हिचका और गांधी की न केवल बर्बर तरीके से हत्या किया, बाद में भी उसे जायज भी ठहराया ( गांधी बध क्यों ?) और उस पर गर्व महसूस करता रहा है।

नाथूराम गोडसे जैसे हिंसक हिंदू होने के स्रोत हिंदू धर्म, हिंदू धर्मग्रंथों और महाकाव्यों में हैं। भारत में जान लेने यानि हत्या को सारे हिंदू धर्मग्रंथ और महाकाव्य जायज ठहराते हैं, जिसमें चारो वेद, 18 पुराण और 18 स्मृतियां, वाल्मीकि रामायण, महाभारत और रामचरित मानस जैसे महाकाव्य और तथाकथित हिंदुओं का सबसे मान्य दार्शनिक ग्रंथ गीता भी शामिल है। यहां तक स्वयं हिंदुओं के सबसे बड़े अराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम शंबूक की वर्ण- व्यवस्था का उल्लंघन करने पर (शूद्र) हत्या अपने हाथों से करते हैं।

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