गाड़ी पलटा कर अपराध खत्म करने की रणनीति पर ताली बजा ली हो तो एक कहानी सुनिए….
कहानी की शुरुआत साल 1997 से होती है. 26 जनवरी का दिन था पूरे देश में भारतीय गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा था. तभी उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से एक दर्दनाक घटना की ख़बर फ्लैश होती है. भरे बाजार में एक आठ साल के बच्चे सहित पांच लोगों की दिन दहाड़े हत्या कर दी जाती है.
मारे गए पांच में से तीन लोग स्थानीय भाजपा नेता राजीव शुक्ला के परिवार के थे और बाकी दो उनके सुरक्षाकर्मी. कहा गया कि राजनीतिक अदावत के चलते हत्या हुई है. एक भाजपाई परिवार की हत्या के आरोप में समाजवादी पार्टी के स्थानीय विधायक अशोक कुमार चंदेल को गिरफ्तार किया जाता है. अशोक चंदेल को जेल भेज दिया जाता है. कुछ समय के बाद चंदेल साहब सपा छोड़कर बसपा में शामिल हो जाते हैं और 1999 में लोकसभा का चुनाव जीतकर माननीय सांसद बन जाते हैं.
इस बीच अदालत में उनके खिलाफ़ केस चलता रहता है.
फिर आता है साल 2017. चंदेल साहब हवा का रुख़ भांप कर भाजपा में एंट्री लेने की अर्ज़ी लगाते हैं. अजीबोगरीब बात ये कि भाजपा अपने ही कार्यकर्ता के हत्यारोपी को पार्टी का पटका पहनाने में देर नहीं लगाती, बल्कि उन्हें विधानसभा का टिकट भी दे देती है.
शुक्ला के परिजन पार्टी में हर जगह फरियाद लगाते हैं, इसे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने वाला बताते हैं, लेकिन चूंकि फैसला ‘ऊपर से’ हुआ था, इन फरियादों का कुछ नहीं होता.
भाजपा के बड़े नेता भी शुक्ला परिवार के पक्ष में कोई आवाज़ नहीं उठाते. उमा भारती ज़रूर चंदेल की भाजपा में एंट्री पर आपत्ति जताती हैं लेकिन अमित शाह और यूपी प्रभारी सुनील बंसल के हस्तक्षेप के बाद वो भी शांत हो जाती हैं. अंततः अशोक चंदेल कमल के चुनाव चिन्ह पर विधानसभा का चुनाव जीत कर विधायक चुन लिए जाते हैं.
फिर आता है साल 2019.19 अप्रैल को हमीरपुर हत्याकांड के 22 साल पुराने मामले में चंदेल साहब को हाइकोर्ट दोषी करार देता और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है. यानी भाजपा नेता और उनके परिवार की हत्या का आरोप सही पाया गया. सजा सुनाए जाने के बाद विधायक जी अदालत परिसर से फ़रार हो गए. बाद में 13 मई को उन्होंने अदालत में सरेंडर किया. उन्हें हमीरपुर की जेल में लाकर बंद कर दिया गया. रास्ते में गाड़ी पलटने जैसी कोई वारदात उनके साथ नहीं हुई.
हमीरपुर की जेल में चंदेल साहब का मन नहीं लग रहा तो उन्होंने सिफ़ारिश लगाई जिसके बाद उन्हें आगरा की जेल में ट्रांसफर कर दिया गया. इस ट्रांसफर के लिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपराधियों के काल, यशस्वी मुख्यमंत्री योगी जी का धन्यवाद किया. हमीरपुर से आगरा जाते समय उनकी गाड़ी एक बार फिर पलटने से बच गयी.
उम्रकैद की सजा के बाद अशोक चंदेल की विधायकी चली गयी है. आगे मामला फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.
ख़ैर..कहानी यहाँ समाप्त हो जाती है लेकिन बाकी बातों के अलावा सोचने वाली बात यह है कि भाजपा अपने समर्पित कार्यकताओं के हत्यारे को पार्टी में लेकर टिकट दे दे, मोदी उसका प्रचार करें और भक्त गिरोह की तरफ से चूं भी न हो तो समझिये भक्तिकाल में किस हद तक लोगों के दिलोदिमाग पर कब्ज़ा जमाया जा चुका है.
ये इसलिए ख़तरनाक नहीं हैं कि ये अपराध को काबू नहीं कर पा रहे. ये इसलिए ख़तरनाक हैं क्योंकि ये अपराधियों को लोकतंत्र का चोगा पहनाकर सन्त बना देते हैं. कल अगर दाऊद को पार्टी में लेकर भाजपा सम्मान दे तो उसकी भी अच्छाइयां खोज ली जाएंगी.
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