पटना: बाहर से बिहार आने वाले लोगों को शराबबंदी के कानून में राहत दिए जाने की मांगों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। उन्होंने उन सुझावों को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि चिकित्सा आधार पर प्रमाणित शराब के आदी लोगों के लिए कानून में अपवाद बनाया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि लोगों ने शराब पीकर अपना स्वास्थ्य खराब किया है न कि इसे पर रोक लगाने से।
मुख्यमंत्री ने यह बात अपने राज्यव्यापी सामाजित सुधार अभियान के तहत गोपालगंज में एक जनसभा को संबोधित करते हुए यह बातें कहीं। नीतीश ने अप्रैल 2020 में राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का एलान किया था। इस दौरान उनका जोर शराबबंदी पर ही रहा लेकिन उन्होंने बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि इन कुरीतियों को पूरी तरह खत्म करने की जरूरत है।
नीतीश कुमार ने कहा, ‘कई लोग मुझसे इसलिए गुस्सा हैं क्योंकि मैंने शराब पर प्रतिबंध लगा दिया है। वो कहते हैं कि कम से कम उन लोगों को राहत दी जानी चाहिए जो दूसरे राज्यों से आ रहे हैं। क्या लोग बिहार शराब पीने के लिए आते हैं?’ उन्होंने दावा किया कि विरोधियों के अनुमानों के विपरीत शराबबंदी के बाद भी राज्य के पर्यटन उद्योग में तेजी आई है, जिसे कोरोना महामारी ने कुछ समय के लिए रोक दिया था।
उन्होंने शराब पर प्रतिबंध को लेकर अपने रुख का बचाव करते हुए महात्मा गांधी का उदाहरण दिया। नीतीश कुमार ने कहा, ‘बापू ने कहा था कि अगर वह एक घंटे के लिए तानाशाह बन जाते तो यह सुनिश्चित करते कि देश में शराब की एक भी बूंद नहीं बची है।’ मुख्यमंत्री ने इस कानून का उल्लंघन करने वालों को चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ कानून के अनुसार सख्त कार्रवाई जरूर की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि दीपावली के आस-पास राज्य के कई जिलों में जहरीली शराब से मौत की कई घटनाएं सामने आई थीं, जिसमें 40 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। अकेले गोपालगंज में ही 10 से ज्यादा मौतें हुई थीं। शराब पर प्रतिबंध को लागू करने के लिए पुलिस की जबरन कार्रवाई के मामले सामने आने के बाद गुजरात की तरह यहां भी बाहरी लोगों के लिए नियम में छूट देने की मांग ने फिर जोर पकड़ा है।
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