सरकार दिहाड़ी मजदूरों और गरीबों के लिए कई योजनाएं चला रही हैं. लेकिन शायद उनके आर्थिक हालात में ज्यादा सुधार नहीं हो रहे हैं. महंगाई की मार सबसे ज्यादा इन्हीं गरीब वर्ग पर पड़ती है. केंद्र सरकार ने लोकसभा में मंगलवार को आंकड़े पेश किए हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक पिछले 7 साल में दिहाड़ी मजदूरों के सुसाइड के मामले में तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है. हालांकि इनके कारणों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है.
लोकसभा में मंगलवार को गृह मंत्रालय की ओर से दिहाड़ी मजदूरों की खुदकुशी के मामले में आंकड़े पेश किए गए. इन आंकड़ों के मुताबिक मजदूरों के सुसाइड के केस में पिछले सात सालों में करीब तीन गुना इजाफा हुआ है. कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद के सवाल का जवाब देते हुए गृह मंत्रालय ने जानकारी दी कि 2014 से 2021 के बीच दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्याओं की संख्या लगभग तीन गुना बढ़ गई है. गृह मंत्रालय ने बताया कि 2014 में जहां 15,735 दिहाड़ी मजदूरों ने खुदकुशी की, वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 42004 हो गया.
इन आंकड़ों के मुताबिक, जहां 2014 में रोजाना 43 दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी जान दी, वहीं 2021 में 115 दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. 2014-2021 के बीच जिन पांच राज्यों में आत्महत्या में ज्यादा इजाफा देखा गया उनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात शामिल हैं. जहां 2014 में तमिलनाडु में 3880 दिहाड़ी मजदूरों ने सुसाइड किया, वहीं 2021 में 7673 ने खुदकुशी की. इसी तरह, 2014 में महाराष्ट्र में जहां 2239 दिहाड़ी मजदूरों ने खुदकुशी करने का कदम उठाया, वहीं यह संख्या 2021 में बढ़कर 5270 हो गई.
मध्य प्रदेश में भी इसी तरह की बढ़ोतरी देखने को मिली है. 2014 में एमपी में 1248 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की थी, लेकिन 2021 में यह संख्या बढ़कर 4657 हो गई. तेलंगाना में 2014 में, दैनिक आधार पर अपनी आजीविका अर्जित करने वाले 1242 लोगों ने खुदकुशी की लेकिन 2021 में इनकी संख्या भी बढ़कर 4223 हो गई. गुजरात की बात करें तो 2014 में 669 दैनिक वेतन भोगियों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया, लेकिन 2021 में इनकी संख्या भी बढ़कर 3206 हो गई.
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