नोटबंदी का असली मकसद था कैश का खात्मा…… और इसका अगला चरण 2022 मे लाया गया है और वो है आरबीआई की डिजिटल मनी
नोटबंदी से वो एक भी लक्ष्य हासिल नहीं हुआ जिसका कि दावा किया गया था जैसे काले धन का खात्मा, आतंकवाद पर प्रहार, भ्रष्टाचार पर रोक और नकली नोट को रोकना आदि आदि…..उससे सिर्फ एक लक्ष्य हासिल हुआ जनता ज्यादा से ज्यादा डिजीटल भुगतान की तरफ आकर्षित हुई…..
( अब जो आप पढ़ने जा रहे हैं वो पोस्ट दो साल पहले लिखी थीं)
“अगर मैं आपसे कहूँ कि भारत मे नोटबंदी बिल गेट्स ओर उनके अमेरिकी सहयोगियों के ही इशारे पे की गई तो क्या आप मानेंगे ?….. 2017 में जर्मनी के अर्थशास्त्री नॉरबर्ट हेयरिंग ने यह दावा कर सनसनी मचा दी थी कि भारत मे नोटबंदी अमेरिका के इशारे पर हुई थी लेकिन हमने उन संगठनों के नाम पर ध्यान नही दिया जिनका नाम नॉरबर्ट हेयरिंग ने लिया था और जिनके दबाव में मोदी सरकार ने ये डिसीजन लिया यह संगठन थे ……बेटर दैन कैश एलाइंस, द गेट्स फाउंडेशन (माइक्रोसॉफ्ट),ओमिडियार नेटवर्क (ई-बे), द डेल फाउंडेशन, मास्टरकार्ड, वीजा और मेटलाइफ फाउंडेशनमास्टरकार्ड, वीजा और मेटलाइफ फाउंडेशन
उस वक़्त नॉरबर्ट हेयरिंग ने यह दावा किया था कि नोटबंदी के लगभग महीने भर पहले, अमेरिका द्वारा दूसरे देशों को मदद करने के लिए बनाई गई संस्था यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी ऑफ इंटरनेशनल डेवलेपमेंट (यूएसएआईडी) ने ‘कैटलिस्टः कैशलेस पेमेंट पार्टनरशिप’ की स्थापना की गई जिसमे भारत के वित्त मंत्रालय की भी हिस्सेदारी थी
नोटबंदी का सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य था वह था जितनी भी नगदी है उसे वापस बैंक में डालना ओर उसका डिजिटलीकरण कर देना…….तभी नोटबंदी के ठीक बाद कैशलेस, ओर लेस कैश जैसे शब्द हवा में उछाले गए…..
दरअसल नरेंद्र मोदी 2014 में चुनाव जीतने के बाद वाशिंगटन गए तो उन्होंने इस लक्ष्य को लेकर एक वादा किया था। उनकी यात्रा के दौरान ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ में बिल गेट्स फाउंडेशन यूएसएआईडी, भारत के वित्त मंत्रालय और डिजिटल लेन-देन में शामिल कई अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के बीच एक भागीदारी की घोषणा हुई थी।और बराक ओबामा के भारत दौरे पर भारत ‘बेटर दैन कैश एलायंस’ में शामिल हो गया।
1 सितंबर 2015 की मनी भास्कर की ख़बर छापी कि ‘भारत अपने फाइनेंशियल इन्क्लूजन अभियान को और व्यापक बनाने के लिए यूनाइटेड नेशंस के ‘बेटर दैन कैश अलायंस’ से जुड़ने जा रहा है।’
इस खबर में एक ओर खास बात आखिरी में लिखी थी यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्लैगशिप फाइनेंशियल इन्क्लूजन अभियान प्रधानमंत्री ‘जन-धन योजना’ की पहली वर्षगांठ के अवसर भी की गई।, इस योजना के तहत 175 मिलियन नए अकाउंट्स खोले गए हैं, जिनमें 22,300 करोड़ रुपए जमा किए गए हैं।’
यहां एक बहुत महत्वपूर्ण बात आपके सामने रख रहा हूँ भारत मे जन-धन खाते की मूल योजना की अनुशंसा रिजर्व बैंक द्वारा बनाई गई नचिकेत मोर कमेटी ने की थी नचिकेत मोर बाद में 2016 में भारत मे बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के भारत मे प्रमुख बने जो 2019 तक उसी पद पर रहते हुए रिजर्व बैंक के डिप्टी डायरेक्टर तक बने……….
दिसम्बर 2015 में अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और यूएसएआईडी ने संयुक्त रूप से वाशिंगटन में एक वित्तीय समावेशन फ़ोरम आयोजित किया. जिसमे बिल गेट्स ने कहा “अर्थव्यवस्था का पूरी तरह डिजिटाइजेशन विकासशील देशों में अन्य जगहों के मुकाबले तेज रफ़्तार से हो सकता है. निश्चित रूप से यह हमारा लक्ष्य है कि हम आने वाले तीन सालों में बड़े विकासशील देशों में इसे सम्भव बनाएँ. …गेट्स भारत में आधार कार्ड के “सर्वव्यापी होने” से बेहद उत्साहित थे क्योंकि इससे हर व्यक्ति को “पहचान सुनिश्चित करके उसे सेवा प्रदान की जा सकेगी.” उन्होंने एक और दिलचस्प बात कही कि भारत जैसे देश अमेरिका की तुलना मेंज्यादा तेज रफ़्तार से डिज़िटलीकरण की दिशा में बढ़ सकते हैं क्योंकि वहाँ लोगों की निजता और डेटा को संरक्षित करने की कानूनी बाध्यताएँ बहुत कम हैं.
बेटर दैन कैश एलायंस में भारत शामिल हो चुका था इस एलायंस में वीजा और मास्टरकार्ड के अलावा सिटी बैंक भी शामिल था जो उस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा बैंक था, दरअसल सिटी बैंक और ये संस्थान नगदी के सख्त खिलाफ थे , दरअसल एक बात और थी 2010 में अमेरिका डॉड फ्रैंक एक्ट लागू हुआ था और इसके कारण 2015 में अमेरिकी पेमेंट कंपनियों का कमीशन आधा रह गया उन्हें नए बाजार की तलाश थी मौका मोदी जी ने दे दिया
नोटबंदी के 9 महीने पहले फरवरी 2016 में अमेरिकी संस्था यूएसएआईडी एक रिपोर्ट जारी करती है इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 97 फीसदी रिटेल ट्रांजैक्शन अभी भी कैश पर आधारित है और पिछले तीन माह में केवल 29 फीसदी बैंक एकाउंट का उपयोग हुआ है, इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट मेथड्स जैसे डेबिट कार्ड और मोबाइल वॉलेट का उपयोग बहुत निम्न है।…….यूएसएआईडी भारत के कैश फ्लो को डिजिटल इकोनॉमी की सबसे बड़ी बाधा
नॉरबर्ट हेयरिंग ने नोटबंदी के दो साल बाद लिखे लेख में इन सब बातों का खुलासा करते हुए बतलाया कि ‘जितना कम नगद इस्तेमाल होता है, उतना ज्यादा बैंक में जमा राशि का रूप लेता है। बैंक में जितना ज्यादा पैसा जमा होगा, वे उतने फायदेमंद धंधों में घुस सकते हैं………भारत मे भी ठीक यही हुआ……नोटबंदी के थोड़े समय बाद अमेरिकी सलाहकार कंपनी बीसीजी और गूगल ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें भारतीय लेन-देन के बाजार को ‘500 अरब डॉलर के सोने का बर्तन’ कहा गया। नोटबंदी के बाद अमेरिकी निवेशक बैंक ने संभावित मुख्य लाभार्थियों में वीजा, मास्टरकार्ड और एमेजॉन को शामिल किया।……ओर बीते कुछ सालो में हमने देखा कि वह सही थे , अमेज़न ने नोटबंदी के बाद बहुत आक्रामक तरीके से भारतीय e कॉमर्स बाजार में कदम रखे……. ओर डिजिटाइजेशन का मुख्य फायदा वीजा ओर मास्टर कार्ड को ही मिला
ओर बाद में बिल गेट्स ने भी भारत की मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के डिसीजन की भूरी भूरी प्रशंसा की उन्होंने कहा कि इससे पारदर्शी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने में मदद में बड़ी मदद मिलेगी……….दरअसल नोट बंदी का फैसला वित्तमंत्री अरुण जेटली और रिजर्व बैंक का फैसला कभी था ही नहीं उन्हें इस कदम का कोई अंदाजा ही नही था यह नरेंद्र मोदी का ही फैसला था।……..
साफ है कि नरेन्द्र मोदी जी ने अपने अमरीकी आकाओं के कहने पर ही इस नोटबंदी को लागू किया था
ये रिपोर्ट मशहूर पत्रकार ग्रीश मालवीया के वॉल से साभार है
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