50 साल से वकालत कर रहा हूं,अब सुप्रीम कोर्ट से कोई आशा नहीं है : कपिल सिब्बल

ये कहना है सुप्रीम कोर्ट में 50 साल वकालत कर चुके सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल का, एक बार अपने दिमाग में घुसे कांग्रेस बीजेपी के कीड़े को साइड में निकाल कर पढ़े कि वह कहना क्या चाह रहे है…….
कपिल सिब्बलने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहकर की कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद संस्थान में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है। उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित हो जाए, लेकिन इससे शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती हो।
कपिल सिब्बल एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल में बोल रहे थे जो 6 अगस्त 2022 को नई दिल्ली में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) एंड नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (एनएपीएम) द्वारा “नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक” पर आयोजित किया गया था। ट्रिब्यूनल का फोकस गुजरात दंगों (2002) और छत्तीसगढ़ आदिवासियों के नरसंहार (2009) पर सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले पर था।
सिब्बल ने गुजरात दंगों में मारे गए गुजरात के कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी का सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने कहा कि अदालत में बहस करते हुए उन्होंने केवल सरकारी दस्तावेजों और आधिकारिक रिकॉर्डों को रिकॉर्ड किया और कोई निजी दस्तावेज नहीं रखा था। उन्होंने कहा कि दंगों के दौरान कई घर जला दिए गए। स्वाभाविक रूप से खुफिया एजेंसी इस तरह की आग को बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड बुलाएगी।
एडवोकेट सिब्बल के अनुसार खुफिया एजेंसी के दस्तावेज या पत्राचार से पता चलता है कि किसी फायर ब्रिगेड ने फोन नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि यह तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने ठीक से पूछताछ नहीं की कि फायर ब्रिगेड ने कॉल क्यों नहीं उठाया और इसका मतलब यह था कि एसआईटी ने अपना काम ठीक से नहीं किया।
सिब्बल ने कहा कि इन सबमिशन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा कि एसआईटी ने कई लोगों को केवल उन लोगों द्वारा दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए छोड़ दिया जो खुद आरोपों का सामना कर रहे थे। हालांकि इन पहलुओं को सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि कानून का छात्र भी जानता होगा कि किसी आरोपी को सिर्फ उसके बयान के आधार पर छोड़ा नहीं जा सकता।
इस पीपुल्स ट्रिब्यूनल में पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह ने छत्तीसगढ़ मुठभेड़ मामले पर अपनी प्रारंभिक टिप्पणी देते हुए कहा कि आदिवासियों के साहस की सराहना करने और स्वतंत्र जांच का आदेश देने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस द्वारा की गई जांच पर आदिवासियों को दंडित किया, जहां पुलिस खुद मुकदमे में आरोपी थी। उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाए गए रूख पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि नरसंहार की घटना विवाद में नहीं थी और भले ही पीड़ित के आरोप कि पुलिस और सुरक्षा बलों ने उन पर हमला किया था, उस पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए, फिर भी आपराधिक न्यायशास्त्र के लिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच अनिवार्य है। उन्होंने आगे जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने उस संघर्ष को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जिसके माध्यम से दुर्भाग्यपूर्ण आदिवासी पीड़ित इस अदालत तक पहुंचने में कामयाब रहे और जांच के लिए एसआईटी बनाने के बजाय, याचिकाकर्ता नंबर 1 पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। यह कैसा आपराधिक न्याय था? जस्टिस शाह ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि वह स्वयं एक न्यायाधीश रहे हैं और उन्होंने ऐसी कई कार्यवाही देखी हैं लेकिन स्वतंत्र जांच से इनकार करने और याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाने की प्रवृत्ति एक स्वस्थ संकेत नहीं है।
मीडिया में सिर्फ टेलीग्राफ और लाइव लॉ ने ही यह ख़बर छापी है , उपरोक्त बयान लाइव लॉ से ही साभार लिया गया है, अगर थोड़ा वक्त निकाल पाए तो कपिल सिब्बल की स्पीच का वीडियो सुन ले लिंक कमेंट बॉक्स में दिया गया है

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