मैं बी जे मेडिकल कॉलेज साइकल से जाने वाला अकेला विद्यार्थी था। छह महीने बाद वालिद साहब ने मुझे बाइक दिलाई थी।”आवाज़ दी वॉयस को अपनी कामयाबी के सफ़र के बारे में बात करते हुए डॉक्टर सुहैल ख़ान ने मुस्कुराते हुए बताया। यह बात इस लिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कॉलेज तक जाने के लिए साइकल का प्रयोग पचास साल पहले नहीं बल्कि 2002 में किया जा रहा था।
डॉक्टर सुहैल ख़ान ने बी जे मेडिकल कॉलेज से एम बी बी एस किया है। उसके बाद डी एन बी आर्थो और एम एस आर्थो किया है। वह पुणे में एक कामयाब आर्थो सर्जन की हैसियत से प्रेक्टिस कर रहे हैं। पुणे के कोंढवा इलाक़े में उनका सना अस्पताल है जो कोविड महामारी के समय में कॉविड सेंटर के तौर पर काम कर रहा था। डॉक्टर सुहैल ख़ान ने अपने नए अस्पताल को जनता की सहायता के लिए तुरन्त कोविड् सेंटर में परिवर्तित कर दिया था।
डॉक्टर बनने का स्वप्न डॉक्टर सुहैल ख़ान ने नहीं देखा था बल्कि यह उनके दादा जी का ख़्वाब था। डॉक्टर सुहैल बताते हैं कि दादा जी के ख़्वाब को पूरा होने में दो पीढ़ी का समय लगा। वह अपने भाई को डॉक्टर बनाना चाहते थे लेकिन पैसों की कमी के कारण न तो दादा जी के भाई डॉक्टर बन सके और न ही उनकी औलादें डॉक्टर बन पाईं।” लेकिन उनके ख़्वाब को उनके पोते ने पूरा कर दिखाया। डॉक्टर सुहैल का कहना है कि दादा जी बहुत सख़्त थे लेकिन खयाल भी बहुत रखते थे। उनका कहना था कि केवल शिक्षा ही जीवन बदल सकती है इसलिए पढ़ो, पढ़ो और सिर्फ़ पढ़ो।
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