देश को आज़ाद हुए 73 साल हो चुके है इस दौरान देश का विकास तो खूब हुआ लेकिन देश के साथ साथ मुस्लिम समुदाय का विकास न हो सका, दिन प्रतिदिन मुस्लिम समुदाय की हालत ख़राब होती गयी है नारे तो खूब लगे सबका साथ सबका विकास लेकिन मुस्लिम समाज को अछूत समझ कर हमेशा विकास से बाहर रखा गया ये अलग बात है की सेक्युलर पार्टिया मुसलमानों का साथ खूब ले बदले में उन्हें बदहाली दी,
सच्चर कमेटी के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु समूह के एक-चौथाई मुस्लिम बच्चे या तो स्कूल नहीं जा पाते या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं, 17 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे के लिए मैट्रिक स्तर पर मुस्लिमों की शैक्षणिक उपलब्धि 26 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 17 प्रतिशत है, केवल 50 प्रतिशत मुस्लिम ही मिडिल स्कूल पूरा कर पाते हैं जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 62 प्रतिशत बच्चे माध्यमिक शिक्षा पूरा करते हैं, शहरी इलाकों और ग्रामीण अंचलों में केवल 0.8 प्रतिशत और शहरों में 3.1 प्रतिशत ही स्नातक हैं. शहरी इलाकों में तो स्कूल जाने वाले मुस्लिम बच्चों का प्रतिशत दलित और अनुसूचित जनजाति के बच्चों से भी कम है यहाँ 60 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे स्कूलों का मुंह नहीं देख पाते हैं. आर्थिक कारणों के चलते समुदाय के बच्चों को बचपन में ही काम या हुनर सीखने में लगा दिया जाता है.
वही सरकारी नौकरी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी मात्र 4.9 % है उसमे भी ज़्यादातर निचले पदों पर ये काम कर रहे है, वही आईएएस और आईपीएस जैसी पदों पर मात्र 3.2 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी मुस्लिम समाज की है वही स्वास्थ क्षेत्र की अगर हम बात करें तो मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी मात्र 4.4% है
जब मुस्लिम समुदाय शिक्षा और नौकरी के मामलों में इतना ज़्यादा कमज़ोर है तो ज़ाहिर से बात है की संपत्ति के मामलों में भी उनका हाल ख़राब ही होगा अगर हम सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में देखे तो हम पाते है की ग्रामीण इलाकों में 62.2% मुस्लिम समुदाय के पास कोई ज़मीन ही नहीं है जबकि इस मामले में देश का राष्ट्रिय औसत 43 % है
प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी मुस्लिम समुदाय दलित समाज और पिछड़े वर्ग से भी ज़्यादा भी ख़राब है यानी इनसे भी कम है,
अगर बात हम मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में लाने की करें तो उसके लिए सबसे ज़रूरी कदम ये होगा की मुस्लिम समाज को आरक्षण मिले क्योंकि हमने देखा है की सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है की 60% मुस्लिम बच्चे स्कूल का मुँह नहीं देखते क्योंकि परिवार का पेट पलने के लिए बचपन में ही हुनर सीखने में लग जाते है वही सरकारी नौकरी में भी यह आंकड़ा मात्र 4.9% ही है जब की प्रतिव्यक्ति के मामले भी मुस्लिम समुदाय सबसे निचले पायदान पर है आरक्षण के लिए जो माप होना चाहिए मुस्लिम समुदाय उस माप से भी नीचे है
देश तभी आगे बढ़ सकता जब देश के सभी वर्ग एक साथ आगे बढे, जबतक मुस्लिम समाज पिछड़ा रहेगा देश कभी विश्वगुरु नहीं बन सकता है
लेखक ओसामा शैख़
(ये उनके अपने विचार हैं )
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