नई शिक्षा नीति कहती है छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी,तो इंटर्नशिप कहाँ होगी ? इसरो में? एम्स में? या जियो मोबाइल कंपनी में

कुछ लोग नई शिक्षा नीति में छठवीं दर्जे से बच्चों को इंटर्नशिप कराने के विचार का समर्थन कर रहे हैं. कोई मुझे बताए कि ​छठवीं का 11 साल का बच्चा कहां इंटर्नशिप करेगा? इसरो में? एम्स में? मैक्स में? माइक्रोसॉफ्ट में? सेना में? रेल मंत्रालय में? डीयू में? जेएनयू में? जियो मोबाइल कंपनी में? एचसीएल में? आखिर कहां?

नई शिक्षा नीति कहती है कि ‘छठीं क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे. इसके लिए इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी’.

बच्चे कौन-सा व्यावसायिक काम कर सकते हैं? मैं बताता हूं. बच्चों से सिर्फ शारीरिक मेहनत के काम करवाए जा सकते हैं. कपड़ा उद्योगों में उनसे सिलने, बटन लगवाने जैसे काम करवाए जाते हैं. बीड़ी उद्योग, चाय उद्योग, गाड़ी धोने, पंचर बनाने जैसे कामों में लगाया जाता है. बच्चे सामान लाने, ले जाने, भागने दौड़ने वाले काम ज्यादा क्षमता के साथ कर सकते हैं, इसलिए होटल वाले बच्चों को रखते हैं ताकि वे दिन भर बिना थके दौड़ सकें.

दुनिया आगे जाने को सोचती है, हमारी सरकार हमारे बच्चों के लिए ऐसी व्यवस्था कर रही है कि बचपन से ही आंखों को सपने देखने से रोक दिया जाए.

भारत में कौन मां बाप हैं जो अपने बच्चे को छठवीं क्लास के बाद बाल मजदूरी में धकेलने का सपना देख रहे हैं? मैं दुआ करूंगा कि ऐसा क्रूर सपने कभी पूरा न हों.

वहीं दूसरी जगह लिखते हैं अगर 11 साल के बच्चे को काम पर भेजना ही है तो उसके लिए नई शिक्षा नीति बनाने की जरूरत नहीं थी. बस अर्थव्यवस्था को माइनस में ही बनाए रखना है. तब बच्चा हो या वयस्क, सब या तो मजदूरी करेंगे या तो भीख मांगेंगे. बदनामी लेने की क्या जरूरत है कि सरकार छठवीं के छात्र को इंटर्नशिप कराने का कानून बना रही है?

जिस सरकार के कार्यकाल में 12 से 15 करोड़ नौकरियां चली गई हों, वह बच्चों को इंटर्नशिप पर भेजने और शिक्षा को विदेशी कंपनियों को सौंपने जैसी नीति ही बना सकती है.

मजेदार ये है सरकार अगर कह दे कि सबको सल्फास खिलाकर अमरत्व प्रदान करेंगे तो मीडिया वैसे ही लिख देता है. एक स्टोरी अलग से कर देता है कि सल्फास खाने के दस फायदे. वह ये नहीं पूछता कि सल्फास खाकर भला कौन अमर हुआ है?

कोई ये नहीं पूछ रहा है कि बिना संसद में चर्चा के सरकार इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकती है? संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में है. क्या राज्यों से भी परामर्श लिया गया? कुछ राज्यों के विरोध के बाद भी इसे मंजूरी क्यों दी गई?

इस महामारी के दौर में भी सरकार को जल्दी क्यों है? जवाब है कि इस संकट के समय में लोगों का ध्यान इधर नहीं है. इसी बीच सब बेच देना है.

लेखक :Krishna Kant

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