अंकारा ;करीब पांच दशकों तक इस्लामिक जगत का मुखिया बनने की कुछ अनकही शर्तें थीं.
पहली इस्राएल का विरोध और बहिष्कार.
दूसरी, दुनिया में जहां भी मुसलमान परेशान हों, वहां नैतिक और हथियारों की मदद.
तीसरी शर्त थी, हर सामाजिक आंदोलन को पश्चिम की साजिश करार देना.
चौथी शर्त, धर्म का सख्ती से पालन करना और कराना. लेकिन इन सब शर्तों को पूरा करने के लिए खूब पैसा भी चाहिए. और अब तेल के खेल में वह पुरानी बात नहीं रही.
यह एक बड़ा कारण है कि बीते दस साल में सुन्नी जगत के सबसे प्रभावशाली देश सऊदी अरब और यूएई इस फॉर्मूले से हट चुके हैं. पेट्रोलियम आधारित अर्थव्यवस्था को ज्यादा विविध बनाने के लिए इन देशों ने नए रास्ते अपनाए हैं. रूढ़िवादी सऊदी और अमीरात राजशाहियां अब नागरिक अधिकारों के मामले में उदार नजर आने लगी हैं.लेकिन क्या फॉर्मूले से दूर होने पर इस्लामिक जगत में नेतृत्व की कमी हो रही है? और क्या तुर्की उसे भरने की कोशिश कर रहा है?
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