हर मुद्दे पर मुखर और बेबाकी से बोलने वाले देश के मशहूर पत्रकार रवीश कुमार ने देश की मौजूदा परिस्थिति को देखते हुऐ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर तंज कसा है
पत्रकार रवीश कुमार ने एक प्रसिद्ध न्यूज़ वेबसाइट आर्टिकल 14 के एक लेख को अपने फेसबुक पेज पर शायर करते हुऐ मुख्य न्यायाधीश को लिखा
आपकी मौजूदगी में, आपकी रज़ामंदी से यह देश ख़त्म हो रहा है। नोट करते चलिए। दीवारें एक जगह से नहीं, चारों तरफ़ से झड़ रही हैं। मुझे मालूम है भारत जैसे घोर अनैतिक समाज में नैतिकताओं का निर्माण करना असंभव है, फिर भी नज़र रखने में क्या हर्ज है।
बाक़ी आप इतिहास में सबसे ज़्यादा झूठ बोलने वाले नेता की पूजा करते रहें। इसी में आपकी मुक्ति है। कहां ऐसे लेखों को पढ़ने का वक़्त बचा होगा और समझने की क्षमता।
दर असल देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के रिटायर से ठीक एक दिन पहले मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने एक मंच से अपने कार्यकाल की व्याख्या की जिस पर आर्टिल 14 ने एजे रिव्यू एक लेख छपा जिसमें इस बात उल्लेख किया कि मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने अपने कार्यकाल के दौरान कानून और संविधान के शासन को बनाए रखने की आवश्यकता पर लगभग 29 व्याख्या दिए। लिकिन जब हमने इस का विश्लेषण किया तो पाया की राष्ट्रीय से जुड़े छह मामले ऐसे भी गुजरे जिस पर कोई चर्चा नहीं की गई और 53 मामले ऐसे थे जिसमें एक ‘संविधान पीठ’ द्वारा व्यापक समीक्षा की आवश्यकता थी लेकीन इन सभी को लंबित रखा गया था, क्योंकि ये सब मामले पिछले मुख्य न्यायाधीशों द्वारा रह गए थे। याचिकाकर्ताओं के साथ हमारी बातचीत से दो भावनाएं उभरीं- एक निराशा की और थोड़ी उम्मीद की
इसी मामले को नजर में रखते हुऐ रवीश कुमार ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना से ये अनुरोध किया कि अगर समय मिले तो उसे जरूर पढ़िएगा।
रवीश कुमार का ये पोस्ट जैसे सोशल मीडिया पर वायरल हुआ लोग भी अपनी प्रतिक्रिया देने लगे एक यूजर ने लिखा
सैल्यूट है सर आपको कि ऐसे माहौल में भी इतनी हिम्मत और इतना साहस रखते हैं। बहुत सौभाग्य शाली हैं आप कि आप देश का कर्ज अपनी लेखनी से उतार रहे हैं। यह देश आपको हमेशा याद रखेगा। इतिहास के पन्नों में लिखा जाएगा कि आप देश के लिए उस समय लड़ रहे थे, जब कोई ताकत पूरे देश को अपने नियंत्रण से अपनी मात्र महत्वाकांक्षाओं के लिए संचालित कर रही थी।
एक दूसरे यूजर ने लिखा अब देश में सिर्फ धर्म रह गया है।
नैतिकता मार गई है।
सच सुनने और समझने की शक्ति भारतवासी खो चुके है।
इसका अंदाजा तब होगा जब सब हाथ से निकल जायेगा।
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