“लोगों का सच दिखाओ” नारे के साथ लोगों ने घेरा बेलारूस के सरकारी टीवी को
बेलारूस में भी एक सरकारी टेलिविज़न है जैसे भारत में। वहाँ पर चुनाव हुए हैं। अलेक्ज़ेंडर लुकाशेन्को 1994 से राष्ट्रपति के पद पर हैं। हाल के चुनाव में उन्हें 80 प्रतिशत मत मिले हैं। विपक्ष की उम्मीदवार श्वेतलाना तिखानोवासक्या को 10 प्रतिशत मिले हैं। उनके समर्थक और जनता सड़क पर है कि चुनाव में बेईमानी हुई है।
नतीजों वाले दिन जब लोग प्रदर्शन कर रहे थे तब सरकारी चैनल ने नहीं दिखाया। इस तरह से दिखाया कि ये हिंसा करने वाले प्रदर्शनकारी हैं। उनकी बातों को ग़ायब कर दिया। ख़बरों के सेंसर करने के विरोध में सरकारी चैनल के कई पत्रकारों ने इस्तीफ़ा दे दिया। चैनल के सौ के क़रीब कर्मचारी मुख्यालय की इमारत से बाहर आए और प्रदर्शन में शामिल हो गए।
यहाँ तक की सारी जानकारी BBC के लेख से है।
दुनिया में कई देश ऐसे हैं जहां लोकतंत्र के नाम पर चुनाव तो होते हैं मगर नतीजे नहीं बदलते हैं। चीन और रूस का हाल जानते हैं। आख़िरी वक्त में ऐसे प्रदर्शनों का मतलब नहीं रह जाता है। इसलिए ख़त्म होने से पहले जागना चाहिए। क्योंकि अब सत्ता के पास ऐसे तंत्र आ गए हैं जिससे कई दशक तक खुद को क़ाबिज़ किया जा सकता है। पहले के बदलावों के उदाहरण काम के नहीं रहे। होते तो दुनिया में कहीं दिखते। रूस के राष्ट्रपति ने बेलारूस के राष्ट्रपति को समर्थन कर दिया है।
भारत में प्राइवेट न्यूज़ चैनल ही जनता का सच नहीं दिखाते।
यह आप जानते हैं। आपको फ़र्क़ नहीं पड़ता। यही राहत की बात है। तभी तो जो ऐसा कर रहे हैं उनमें कोई अपराध बोध नहीं है। जनता के ख़िलाफ़ मीडिया को जनता ही सपोर्ट करे, पैसे देकर ख़रीदें तो फिर क्या किया जाए।
Belarus: Thousands protest outside state TV building https://www.bbc.co.uk/news/world-europe-53790741
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