बीजेपी के चरणो में नतमस्तक मीडिया और बीजेपी के तमाम नेता तथा बीजेपी के समर्थक अमित शाह को राजनीति का चाणक्य कहते हैं। अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी और फर्श से अर्श तक पहुंची है यह बात सभी ने देखी है। वह बात दीगर है कि उसके पीछे चाणक्य फार्मूला कम राजनीतिक धूर्तता ज्यादा दिखाई दी है।
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के बड़े नेताओं द्वारा और खुद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश की जनता के सामने बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जा रही है। करोड़ों रुपए की योजनाओं के सपने दिखाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ धर्म के नाम पर भी उत्तर प्रदेश की जनता को बरगलाने का प्रयास किया गया और आगे भी किया जाएगा। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन में जिस तरह का मीडिया प्रचार दिखाई दिया है उससे इस बात का अंदाजा लग चुका है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में धर्म की चासनी जरूर लपेटी जाएगी।
लेकिन इन सब के बावजूद बीजेपी को जीत का भरोसा नहीं है। शायद उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ी हार दिखाई दे चुकी है, इसके संकेत मिलने लगे हैं।
अमित शाह का अजमाया हुआ फार्मूला है कि विरोधियों को हर तरह से कमजोर कर दो। प्रचार के क्षेत्र में भी पीछे छोड़ दो। आर्थिक क्षेत्र में भी कमजोर कर दो। ताकि चुनाव जीतने के लिए या फिर चुनावी प्रचार के लिए जो-जो चीजें जरूरी है उसमें विपक्षी पार्टियां खासतौर पर वह पार्टी जो चुनाव में मुख्य विपक्षी दल है, वह पूरी तरीके से हताश हो जाए, कमजोर हो जाए।
अब हर बार नोट बंदी लागू नहीं की जा सकती चुनाव से ठीक पहले इसलिए विपक्षी पार्टियों को आर्थिक रुप से कमजोर करना है तो चुनाव से ठीक पहले इनकम टैक्स और सीबीआई का सहारा बीजेपी द्वारा लिया जाता है। यह बात हर चुनाव से पहले दिखाई दी है और साबित भी हुई है। पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले ममता बनर्जी के करीबियों पर सीबीआई और ईडी द्वारा छापे मारे गए थे।
उत्तर प्रदेश का चुनावी बिगुल बज चुका है और चुनावी बिगुल बजते ही बीजेपी के लिए अंदरूनी तौर पर काम करने वाली सीबीआई और ईडी भी मैदान में उतर चुकी है। अखिलेश यादव के करीबियों पर इनकम टैक्स के छापे मारे जा रहे हैं। ताकि समाजवादी पार्टी को डराया जा सके, समाजवादी पार्टी को जो आर्थिक सहायता मिल रही है उसको कमजोर किया जा सके या फिर जिसके द्वारा आर्थिक मदद की व्यवस्था हो रही है उसको चुप कराया जा सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक की रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने के लिए पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थी कि सरकारी मशीनरी का सहारा लिया जा रहा है। सरकारी बसों से लोगों को लाया जा रहा है। स्कूलों से बच्चों को उठाकर रैलियों में ले जाया जा रहा है। लाने और ले जाने में जो पेट्रोल डीजल खर्च हो रहा है वह सरकारी वहन पर हो रहा है।
पिछले दिनों कई लोगों ने सवाल किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में लोगों को इकट्ठा करने के लिए जिस तरीके से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हो रहा है क्या वह उचित है? एक पार्टी के चुनावी प्रचार के लिए सरकारी मदद क्या जायज है? क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में चुनावी वादे कर रहे हैं, विपक्षियों पर हमले कर रहे हैं। तो यह सरकारी कार्यक्रम तो हो नहीं सकता। क्योंकि सरकारी कार्यक्रमों में राजनीतिक बातें नहीं होती। एक तरफ बीजेपी की रैलियों में भीड़ इकठ्ठा नहीं हो रही है। सरकारी विभागों को आदेश दिया जा रहा है। भीड़ इकट्ठा करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को टारगेट दिया जा रहा है लोगों को लाने का।
दूसरी तरफ अखिलेश यादव की रैलियों में बिना किसी सरकारी मदद के बीजेपी से कहीं अधिक भीड़ इकट्ठा हो रही है। अखिलेश यादव को सुनने के लिए लाखों की तादात में बिना किसी सरकारी मदद के लोग आ रहे हैं। तो क्या बीजेपी अखिलेश यादव के बढ़ते जनाधार से घबरा गई है? बीजेपी को उत्तर प्रदेश में हार दिखाई दे चुकी है? अखिलेश यादव के बढ़ते हुए जन समर्थन को देखते हुए ही अखिलेश यादव के करीबियों पर बीजेपी के इशारे पर इनकम टैक्स की रेड डल रही है? क्या ऐसे सवाल नहीं पूछे जाएंगे? क्योंकि चुनाव से ठीक पहले हर बार यही होता है।
अगर सीबीआई और इनकम टैक्स को छापे डालने ही हैं तो फिर चुनाव से ठीक पहले क्यों, उसके पहले पूछताछ क्यों नहीं की गई या फिर छापे क्यों नहीं डाले गए? आज से 1 साल पहले अखिलेश यादव के करीबियों पर छापे डालने से कौन रोक रहा था, चुनाव से ठीक पहले ही क्यों?
नोटबंदी करने के कई कारण बताए गए थे सरकार द्वारा। लेकिन हकीकत यही थी कि विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक रूप से पूरी तरीके से कमजोर करना मकसद था और उसमें पूरी तरीके से बीजेपी कामयाब भी हुई थी। बीजेपी के पास अथाह पैसा है जो उसको राजनीतिक फंड के तौर पर मिलता है। इसके अलावा लोग आरोप भी लगाते हैं कि सरकारी मशीनरी का उपयोग भी बीजेपी खूब करती है। सरकारी वहन होता है बीजेपी की राजनीतिक रैलियों में और कार्यक्रमों में।
दूसरी तरफ हर चुनाव से पहले नोटबंदी जैसा कदम तो सरकार उठा नहीं सकती। क्योंकि अब यह जनता बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। इसलिए राजनीतिक पार्टियों को डराना धमकाना और उनको आर्थिक रुप से कमजोर करना है तो सीबीआई और इनकम टैक्स के छापे डलवा कर बीजेपी अपने राजनीतिक मकसद में कामयाब होने की सोचती रही है और हर चुनाव से पहले चुनावी राज्य में यही होता है पिछले कुछ सालों से।
तो इसका मतलब यही है कि जिस तरीके से पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले वहां की विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर इनकम टैक्स के छापे डाले गए थे, ठीक उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की करीबियों पर डाले जा रहे हैं? तो क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भी वही होंगे जो पश्चिम बंगाल में हुए थे?
अगर बीजेपी को अपने किए गए विकास पर और जो वादे कर रही है उस पर भरोसा है और जिस तरीके से धर्म की राजनीति बीजेपी के नेताओं द्वारा की जा रही है उस पर भरोसा है और बीजेपी के नेतृत्व को लगता है कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन से जनता खुश हो जाएगी तो फिर सीबीआई और और इनकम टैक्स की जरूरत क्या है? अगर जरूरत पड़ रही है तो इसका मतलब यही निकाला जाना चाहिए कि बीजेपी का नेतृत्व है डरा हुआ है उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर।
अगर कोई कुछ गलत करता है तो बिल्कुल उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन चुनाव से ठीक पहले अगर कार्रवाई होती है किसी विपक्षी पार्टी के नेता पर तो सवाल तो उठेंगे। फिर सीबीआई और ईडी चुनावी समय में ही कार्रवाई क्यों करती है? चुनाव से बहुत पहले क्यों नहीं और बीजेपी के नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? क्या बीजेपी के नेताओं पर आरोप नहीं है? क्या बीजेपी के नेता गलत नहीं हो सकते? सवाल कई हैं और सवालों से साबित होता है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर कॉन्फिडेंस में नहीं है, डरी हुई है।
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