मेरे आगे दुनिया बदलती रही, मैं टेस्ट मैच के खिलाड़ी की तरह टिका रहा पर अब किसी ने मैच ही ख़त्म कर दिया-रवीश कुमार

एनडीटीवी से इस्तीफ़ा देने के बाद वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एक वीडियो संदेश जारी किया है.वीडियो में उन्होंने कहा, “भारत में पत्रकारिता का स्वर्ण युग कभी नहीं था लेकिन आज के दौर की तरह का भस्म युग भी नहीं था, जिसमें पत्रकारिता पेशे की हर अच्छी बात भस्म की जा रही हो.”

मीडिया की मौजूदा स्थिति की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, “गोदी मीडिया और सरकार भी पत्रकारिता का अपना मतलब आप के ऊपर थोपना चाहती है. इस वक़्त अपने संस्थान को लेकर कुछ ख़ास नहीं कहूंगा क्योंकि भावुकता में आप तटस्थ नहीं रह सकते. एनडीटीवी में 26-27 साल गुज़ारे हैं. कई शानदार यादें हैं एनडीटीवी में, जो अब किस्से सुनाने की काम आएंग

https://www.youtube.com/watch?v=G9K9vpGTofo

“मुझे सबसे कुछ न कुछ मिला है, मैं सबका आभारी हूँ. एक का ज़िक्रकर बाक़ी को छोड़ना न्याय नहीं होगा. बेटी विदा होती है, तो वो दूर तक पीछे मुड़कर अपने मायके को देखती है. मैं उसी स्थिति में हूं.”

एनडीटीवी में अपनी शुरुआत का ज़िक्र करते हुए रवीश कुमार ने बताया कि वो अगस्त 1996 में एनडीटीवी से औपचारिक रूप से अनुवादक के तौर पर जुड़े लेकिन उससे पहले काफ़ी समय तक यहां चिट्ठियाँ छांटने का काम भी किया.

उन्होंने बताया, “आपके बीच गया तो घर ही नहीं लौटा. मैं खुद के पास नहीं रहा. शायद अब कुछ वक़्त मिलेगा ख़ुद के साथ रहने का. आज की शाम ऐसी शाम है जहाँ चिड़िया को अपना घोंसला नज़र नहीं आ रहा. शायद कोई और उसका घोंसला ले गया. मगर उसके सामने एक खुला आसमान ज़रूर नज़र आ रहा है.”

उन्होंने आगे कहा, ”भले ही उन्होंने चिट्ठियाँ छाँटी लेकिन इसके लिए उनसे सहानुभूति न रखी जाए क्योंकि मैं उनकी तरह नहीं हूँ जो बात करते हैं चाय बेचने की और उतरते हैं जहाज़ से.अपने संघर्ष को महान बताने के लिए मैं ऐसा नहीं करना चाहता.”

रवीश कुमार ने कहा, “मेरे आगे दुनिया बदलती रही, मैं टेस्ट मैच के खिलाड़ी की तरह टिका रहा. पर अब किसी ने मैच ही ख़त्म कर दिया. इसे टी-20 में बदल दिया. जनता को चवन्नी समझने वाले जगत सेठ हर देश में हैं, इस देश भी हैं. अगर वो दावा करें कि आप तक सही सूचनाएँ पहुँचाना चाहते हैं, तो इसका मतलब है कि अपनी जेब में डॉलर रखकर वो आपकी जेब में चवन्नी डालना चाहते हैं.”

“पत्रकार एक ख़बर लिख दे तो जगत सेठ मुक़दमा कर देते हैं और फिर सत्संग में जाकर प्रवचन देते हैं कि वो आप पत्रकारों का भला चाहते हैं. आप दर्शक इतना तो समझते होंगे.”

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