नई दिल्ली: आज लोकसभा में केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार (4 दिसंबर 2019) को सिटीजन अमेंडमेंट बिल को मंजूरी दे दी। सिटीजन अमेंडमेंट बिल 1955 में संशोधन कर इस नए बिल में नॉन-मुस्लिम अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
सरकार ने इसके लिए 6 धर्मों के लोगों को चुना है। इसमें हिंदू, सिख, जैन, बुद्धिस्ट, क्रिश्चियन और पारसी लोग शामिल हैं। इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से शरणार्थी के तौर पर आए उन गैर मुसलमानों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो। यह बिल इन्हीं गैर-प्रवासियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने की सहुलियत देगा।

इस बिल पर विपक्ष हमलावर है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों ने इसकी तीखी आलोचना की है। विपक्षा का कहना है कि यह संविधान के खिलाफ है। विपक्ष का यह भी कहना है कि यह बिल भारत की सेक्युलर छवि को भी चोट पहुंचाने वाला है। इसके साथ ही तमात दलों का कहना है कि सिर्फ कुछ चुनिंदा धर्म के लोगों को चुनकर बीजेपी अपना वोटबैंक साधने में जुटी हुई है।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का विरोध तो पहले से ही जारी है साथ-साथ सिटीजन अमेंडमेंट बिल का भी विरोध किया जा रहा है। क्षेत्रीय और स्थानीय संगठन इसके विरोध में जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल इस बिल में बांग्लादेश के गैर-प्रवासियों को भी जोड़ा गया है। इन संगठनों का कहना है कि असम के बांग्लादेश की सीमा से सटे होने की वजह से बाहर से कई लोग राज्य में दाखिल होंगे और भारतीय नागरिकता ले लेंगे। संगठनों का कहना है कि इससे 1985 ते असम एकोर्ड का भी उल्लंघन हो रहा है।
हालांकि गृह मंत्री अमित शाह सहित बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने इस विषय पर राजनीतिक दलों और पूर्वोत्तर के नागरिक समूहों से व्यापक चर्चा की है और उनकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है। बता दें कि इस बिल को 19 जुलाई 2016 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन विरोध के चलते इसे पास नहीं किया जा सका था।
माना जा रहा है कि यह बिल लोकसभा में पास हो जाएगा। वहीं राज्यसभा में भी इसके पास होने की पूरी संभावनाएं हैं। राज्यसभा में अन्य दल बीजेपी को समर्थन दे सकते हैं। इससे पहले बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति सदन में सरकार का साथ दे चुके हैं।
(इन्पुट दी इन्कलाब)
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