किसी भी मीडिया हाउस में जगह पाने के लिए आपका “संघी होना” अनिवार्य

न्यूज 18 – अमिश देवगन
न्यूज नेशन – दीपक चौरसिया
रिपब्लिक भारत – अर्नब गोस्वामी
आज तक – रोहित सरदाना, अंजना ओम कश्यप
जी न्यूज – सुधीर चौधरी
इंडिया टीवी – रजत शर्मा
एबीपी न्यूज – सुमित अवस्थी, रुबिका लियाकत
टीवी9 भारत – इसके सभी एंकर संघी नमूने हैं

बाकी छुटमुट हिंदी चैनलों पर भी संघियों का ही प्रभुत्व हो चुका है। राज्यसभा, लोकसभा, डीडी न्यूज पहले से ही सरकारी चैनल हैं। कुलमिलाकर पत्रकारिता की ऐसी नई पौध जो “पत्रकारिता” करना चाहती है। उसके लिए इस देश में एक ऐसी जगह नहीं है जहां वह अपना सीवी भेज सके। न कोई जगह है, न कम्पनी है, न उन्हें लिया जाएगा। ये एक बड़ी विकट समस्या है। हममें से बहुत से दोस्तों ने अपने करियर शुरू ही किए हैं लेकिन काम करने के सारे स्पेस पहले से ही पैक्ड हैं। यदि उनमें कोई जगह है भी तो कास्ट बेसिस पर प्रियॉरिटी दी जाती हैं। वह भी सिर्फ एक कास्ट को। किसी भी मीडिया हाउस में शुरुआती जगह पाने के लिए आपका दुबे, चौबे, त्रिवेदी, शुक्ला होना लगभग अनिवार्य शर्त है। इसके अलावा एक सबसे बड़ी शर्त बनकर जो चीज उभरी है वह है आपका “संघी होना”, सरकार के लिए “जीभ लिटा लेना”। ऐसे में पत्रकारिता की उम्मीद में दिल्ली आए लड़के लड़कियों के लिए कोई स्पेस ही नहीं बचता। बचती है तो सिर्फ बेरोजगारी, छुटमुट पोर्टल, वेबसाइट्स या अपना खुद का यूट्यूब चैनल बनाने का विकल्प।

कई बार ये स्थिति व्यथित करती है। उसमें भी नौकरियां जाना यहां एक सामान्य घटना है। नौकरी जाते ही आप एकपल में जीरो महसूस करने लगते हैं। अगर आप यहां फेसबुक पर, ट्विटर पर कुछ लिख दें तो आपकी organisation को टैग कर दिया जाता है। आपकी कम्पनी को आपके पर्सनल ट्वीट्स में टैग करके आप पर दबाव बनाया जाता है कि आप ऐसा क्यों लिख रहे हैं?
अधिकतर कम्पनियां भी या तो संघी मॉडल पर काम कर रही हैं। या जो काम नहीं कर रही हैं वे ऐसे ट्रोलर्स के एक ट्वीट से तुरंत डिफेंसिव मोड में आ जाती हैं। स्थिति देखिए कि पत्रकारों पर ट्रोलर्स भारी हैं। परिणाम ये होता है कि आपका बॉस आपको ठिकाने लगाने के लिए सोच विचार करने लगता है। कम्पनी को जैसे ही कोई स्पेस मिलता है जैसे ही कोई लूपहोल मिलता है, कम्पनी तुरंत आपको “बाय” कर देती है।

कुलमिलाकर पत्रकारिता में “पत्रकारिता” करना ही कठिन है, बाकी सब सरल है। किसी बड़ी कॉरपोरेट मीडिया कम्पनी में होकर यहां पर लिखना अपने परों को खुद कुतरने जैसा है। यह औरों को नहीं पता होता, सिर्फ आपको पता होता है। धीरे धीरे पत्रकारिता के सभी संस्थानों के दरवाजे आपके लिए बन्द हो चुके होते हैं। किसी भी कम्पनी में आप अपना सीवी नहीं भेज सकते हैं। आपके पास क्या बचता है? बेरोजगारी और आपकी पत्रकारिता….

इस समय देश में कोई कम्पनियां या पोर्टल नहीं हैं जहां आप स्वतंत्र होकर काम कर सकें। कई बार लगता है हम पत्रकारिता क्यों कर रहे हैं? और किसलिए कर रहे हैं।

श्याम मीरा सिंह के वॉल से

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